धान की बुआई का समय नजदीक है और किसानो को समय रहते फसल बुआई से सम्बंधित सभी कार्य पूर्ण कर लेने चाहिए है मानसून भी नजदीक है चार जून के लगभग देश में मानसून दस्तक देने वाला है और लेकिन ध्यान की बुआई पर किसानो को कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है ताकि फसल का अच्छा उत्पादन लिया जा सके
किसानो को सिंचाई के साधन की व्यवस्था करनी जरूरी है
धान की फसल के लिए सिंचाई का पर्याप्त मात्रा में होना जरूरी है और इसके लिए आपके पास सिंचाई का अच्छा साधन होना जरूरी है ताकि फसल के समय पानी की पूर्ति हो सके कई बार बिना सिंचाई के धान की फसल ख़राब हो जाती है और धान की रोपाई समय पर हो जानी जरूरी है ताकि सही समय पर उसमे पकाव आये और उत्पादन भी अच्छा हो। देरी से धान की बौआई करने से फसल के उत्पादन पर असर होता है
कृषि विभाग उत्तर प्रदेश मैनपुरी
कृषि विभाग ने किसानो के लिए धान की फसल के लिए एडवाइजरी जारी की है जिसमे बीज , शोधन, खेत की तैयारी और नर्सरी की जानकारी दी गई है इसमें कृषि अधिकारी ने कहा है की धान में जीवाणु रोग झुलसा , झोका, शिथ ब्लाइट कंडुआ रोग पत्ती धब्बा रोग से बचाव करने के लिए किसानो को धान के बीज पूरी रात पानी में भिगोकर रखने के बाद दूसरे दिन ढाई सौ ग्राम थीरम , 75 प्रतिशत ट्राइकोडर्मा वायो प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधन करके बीजो को छाव वाली जगह में अंकुरित होने के लिए रखे और इसके बाद इनको नर्सरी में लगाए। प्रति हेक्टेयर धान के बीज शोधन पर मात्र 25 से 30 रुपये लगते हैं
धान के खेत की तैयारी
धान की रोपाई करने से पहले खेत की तैयारी अच्छे से करने से धान की फसल में उत्पादन भी अच्छा मिलता है खेत की दो से तीन बार जुताई करने के बाद मेड़बंदी करना जरूरी है और मेड़बंदी के समय ध्यान रखना जरूरी है कही पर कोई छेद मेड़बंदी के दौरान न रहे और पानी लम्बे समय तक खेत में रुके अगर खेत में किसी प्रकार की खरपतवार है तो उसको निकल देना चाहिए
रोगो से धान का बचाव
जब नर्सरी में धान की पौध तैयार की जाती है तो उसमे कीटो का नुकसान अधिक देखने के लिए मिलता है इसके लिए प्रति हेक्टेयर 1.25 लीटर क्लोरोसाइपार का छिड़काव कर सकते है वही पर धान की फसल में लगने वाले रोग खैरा से बचाव के लिए 400 सौ ग्राम ज़िंक सल्फेट के साथ डेढ़ किलो यूरिया मिलाकर या फिर दो किलो बुझे हुए चने के साथ 60 लीटर पानी में मिलाकर पौधों को इस रोग से बचाया जा सकता है वही पर भूमि शोधन के लिए ढाई किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर ट्राइकोडर्मा को 75 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद में मिक्स करके आठ से दस दिन छाव में रखे और फिर सुबह शाम के समय इसका छिड़काव करने से दीमक और फफूंदी से बचाव होगा