Improved Varieties Of Carrots :
गाजर की खेती नगदी फसल के रूप में की जाती है। गाजर की खेती आलू की खेती के साथ सितम्बर के महीने में उगाने के लिए तैयार की जाती है। भारत में मुख्य रूप से दो तरह की खेती होती है। एशियन और यूरोपियन दो तरिके है ,गाजर की खेती किसानो को अच्छा मुनाफा देती है ,जिससे किसान मालामाल हो जाता है। गाजर को प्रयोग कच्चे रूप में खाने के लिए भी किया जाता है। गाजर को मनुष्य द्वारा खाया जाता है ,और उसके ऊपर के भाग को पशुओ को खाने के लिए किया जाता है। गाजर में अनेक पोषक तत्व पाए जाते है। गाजर का हलवा भी बनाया जाता है ,जो काफी स्वादिष्ट होता है। गाजर में विटामिन A की मात्रा अधिक मिलती है ,इसके अलावा विटामिन B ,C ,E ,और D भी पर्याप्त मात्रा में मिलती है। कैंसर के लिए भी गाजर का प्रयोग किया जाता है जिसमे बीटा – केरोटीन नामक तत्व पाया जाता है। भारत में लगभग सभी क्षेत्रों में गाजर की खेती की जाती है।
किसानो को गाजर की किस्मे अधिक पैदावार देती है। गाजर की किस्मो को दो भागो में बाटा गया है ,एक जो अधिक तापमान को सहन कर अच्छी पैदावार देती है वह एशियन किस्म होती है ,और दूसरी जो तापमान को सहन नहीं करती है ,यह यूरोपियन किस्म होती है ,अच्छी किस्मो की खेती कर किसान और अधिक पैदावार से अच्छा मुनाफा कमा सकता है। आइये जानते है गाजर की उन्नत किस्मो की सम्पूर्ण जानकरी
गाजर की उन्नतशील किस्मे –
पूसा केसर किस्म
गाजर की यह किस्मे काफी अच्छी पैदावार देती है ,जो बीज रोपाई के 90 से 110 दिनों के बाद पैदावार देना शुरू करती है। और यह किस्मे प्रति हेक्टैयर के हिसाब से 300 से 360 किवंटल की पैदावार देती है ,और इस किस्म को आकर छोटा होता है और इसका रंग भी गहरा हरा पाया जाता है। यह गाजर की देशी किस्म होती है।
पूसा आसिता किस्म
गाजर की यह किस्म भी काफी अच्छी पैदावार के लिए जानी जाती है ,और इस किस्म को मैदानी प्रदेशो में अधिक उगाया जाता है ,क्योकि यह अधिक पैदावार देती है। इस गजर की किस्म को रंग काला मिलता है। और यह किस्मे 100 दिनों इ अंतराल पर तैयार होती है। और इसके साथ यह किस्म 200 से 210 किवंटल की पैदावार देती है।
पूसा मेघाली किस्म
गाजर की यह किस्म अगस्त और सितम्बर के महीने में उगाई जाती है ,और यह किस्म 1000 से 120 दिनों के अंतराल पर तैयार होती है और प्रति हेक्टैयर के हिसाब से यह किस्म 270 से 300 किवंटल की पैदावार देती है ,और गाजर की इस किस्म में केरोटीन की मात्रा अधिक मिलती है। और इस किस्म के अंदर का गुदा नारंगी रंग में मिलता है ,गाजर की यह किस्मे एक संकर किस्म होती है।
नैन्टस किस्म
गाजर की यह किस्म बेलनाकार आकर में नारंगी रंग में मिलती है ,जो बीज रोपाई के 110 से 120 दिनों क़े बाद पैदावार देने क़े लिए तैयार होती है और यह किस्म प्रति हेक्टैयर क़े हिसाब से 100 से 130 किवंटल की पैदावार देती है। और यह किस्मे अन्य उन्नत किस्मो की तुलना में कम उपज देती है।
पूसा रुधिर किस्म
गाजर की यह किस्म लाल रंग में पाई जाती है। गाजर की इस किस्म को सितम्बर से अक्टूबर क़े महीने में भी बोया जाता है। जो दिसंबर क़े महीने में जाकर पैदावार देना शुरू करती है ,और यह किस्मे प्रति हेक्टैयर क़े हिसाब से 300 किवंटल पैदावार देती है। भारत में इस किस्म की खेत दिल्ली राज्य में की जाती है।
गाजर की अन्य किस्मे
गाजर की एशियन किस्मे –
- पूसा जमदग्नि
- पूसा आंसिता
- चयन नं- 223
- गाजर नं- 29
- पूसा केशर
- हिसार रसीली
- हिसार मधुर
- पूसा मेघाली
गाजर की यूरोपीय किस्मे –
- चैंटनी
- नैन्टीज
- पूसा यमदागिनी आदि।