बुंदेलखंड उन क्षेत्रों में आता है जहा लोग पानी की एक एक बून्द के लिए तरसते है पानी का लेवल काफी निचे जा चूका है खेती लायक पानी की भारी किल्लत है वही पर बुंदेलखंड में बारिश की बात करे तो बहुत कम बारिश यहाँ पर होती है लेकिन यहाँ पर किसानो ने अपनी कमाई के लिए अलग ही रास्ता अपना लिया है हालाँकि यहाँ पर फसल के रूप में दलहन , मोटा अनाज आदि उत्पन्न होते है लेकिन इनसे आए काफी कम होती है जिसके चलते किसानो ने यहाँ पर दूसरे राज्य की तरफ फूलो एवं बागानी खेती की और ध्यान देना शुरू कर दिया है। बुन्देखण्ड क्षेत्र में ब्लू कॉरफ्लोवेर काफी अच्छा उत्पादन देता है ब्लूकॉन की खेती बुंदेलखंड के सूखा ग्रस्त क्षेत्रों में शुरू की गई है ब्लूकॉन के लिए काफी कम मात्रा में पानी की जरुरत होती है जर्मनी में ब्लूकॉन सूखग्रस्त क्षेत्रों में ही उगाया जाता है
काफी 2 हजार रु प्रति किलोग्राम का भाव
ब्लूकॉन का उपयोग दवाई के क्षेत्र में होता है साथ में ही सजावट एवं अन्य कार्यो के लिए भी इसकी मांग काफी अधिक होती है मार्किट में ब्लूकॉन के फूल की कीमत 2000 रु प्रति किलोग्राम तक चली जाती है और शादी के सीजन में तो ये कीमत और अधिक हो जाती है। विदेशो में इसकी काफी अच्छी मांग होती है जर्मनी में इसकी काफी खेती की जाती है। और प्रति बीघा इसमें 15 किलोग्राम रोजाना फूल का उत्पादन ले सकते है हाल ही में बुंदेलखंड एवं झांसी क्षेत्र में इस फूल की खेती की जा रही है इसमें ललितपुर, उरई, बाँदा, हमीरपुर सहित झाँसी में इसकी खेती को बढ़ावा देने के लिए रणनीति तैयार की गई है। यहाँ की जलवायु ब्लूकॉन के लिएउपयुक्त है। कृषि विभाग की तरफ से ब्लूकॉन के फूलो की खेती के प्रोत्साहन के लिए तैयारी की जा रही है
नर्सरी में तैयार होते है पौधे
नवंबर महीने से ही नर्सरी में ब्लूकॉन के पोधो की पौध तैयार की जाती इसके बाद इसको खेतो में लगाया जाता है। फरवरी के महीने में ब्लूकॉन फूलो का उत्पादन शुरू हो जाता है और ये अप्रैल महीने तक इसमें अच्छा उतपादन मिलता। ब्लूकॉन के फूलो को सुखाकर मेडिकल कंपनी एवं अन्य कार्य के लिए बेचा जा सकता है।